स्वभाव - हमारा कर्म Poem by Ajay Srivastava

स्वभाव - हमारा कर्म

शिखर कभी नही कहता
नन्हे पोधे को यहॉ पर
क्यो फलता है|

लहर कभी नही कहती
पेरो को यहॉ पर क्यो झुलाते हो|

पृथ्वी कभी नही कहती
प्रदूषण यहॉ पर क्यो फेलाते हो|

पवन कभी नही कहती
स्वाश क्यो लेते हो यहॉ पर|

सब के सब एक ही रंग कर कहते है|
यही है हमारा स्वभाव, यही हमारा कर्म है|

स्वभाव - हमारा कर्म
Monday, December 14, 2015
Topic(s) of this poem: nature
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Ajay Srivastava

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