आवहन Poem by Ajay Srivastava

आवहन

आवहन कर दिया है एक नवीम युग का
एक नवीन राह की और करना है नवनिमार्ण|

दिलाना है मान सम्मान अपने भारत को
अपनाना और प्रसार करना है आधुनिक तकनीक का|

त्याग देना है रूढीवादी विचारो व परमपराओ का
क्यो की प्रगति की और कदम बढाना है|

यही है समय की पुकार और हर भारतवासी की ईच्छा
बुला रहा है तेरा, मेरा हम सब का अपना भारत|


अब तो प्रगति ही हमारी चाह है|
दिल से आवाज उठ रही है|
तभी तो निर्माण होगा आधुनिक भारत का
यही तो हन सब की चाह है|

आवहन
Monday, December 28, 2015
Topic(s) of this poem: invitation
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