पूछ की Poem by Ajay Srivastava

पूछ की

दाल रोटी की नहीं कीमत की|
खाने की नहीं भूख की|
इंसान की नहीं वस्त्रो की|
सुंदरता की नहीं चमड़ी की|
मतदाता की नहीं मत की|
मत की नहीं संख्या की|
धनवान की नहीं धन की|
कलाकारों की नहीं कला की|
नेताओ की नहीं पद की|
हम जो इंसान कहलाते
वो भगवान तक को इसलिए|

पूछ होती हैं|

भगवन से वरदान क्या मिलेगा|

पूछ  की
Tuesday, December 29, 2015
Topic(s) of this poem: selfish
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