सेल फोन हुँ Poem by Ajay Srivastava

सेल फोन हुँ

बहुत खुश किसनत हो तुम|
साथ है खुबसूरत हाथो का|
नरम अधरो की मुसकान का|
वक्ष से अलिगन कर लेने का|
मन को मोहित करने वाले मधुर शब्दो का|

बस भी करो यू ना प्रशंसा किया करो|

असीमत और असहनीय दबाने का दर्द समझा करो|
अपशब्दो का गना जो झेलना पडता है|
अधरो से निकल रही गन्दी शवास का लेने की असहनीयता|
वो जो बिजली का झटका सहना पढे|
तब अहसास होता है खुश किसमत होने का|

सेल फोन हुँ मेरे को भी सब समझ आता|
तुम इन्सानो की स्वार्थी फिदरत का|

सेल फोन हुँ
Friday, January 22, 2016
Topic(s) of this poem: comedy
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Ajay Srivastava

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