स्मर्ण Poem by Ajay Srivastava

स्मर्ण

यै जो अहसास फिर से उत्तपन्न कराया है|
आधुनिक भारत के प्रति प्रेम भाव जगया है|

वन्दे मातरम का स्मर्ण रखने का अहसास कराया है|
भारत के स्वाभिमान की ललकार है|

ये जो देश प्रेम की मशाल है|
भारत सगठन की पहचान है|

एक जुट हो देश की ललकार है|
कदम से कदम मिलाने की पुकार है|

समय है नव भारत के निर्माण का
हर हाथ का यथा शक्ति योगदान का

स्मर्ण
Friday, February 19, 2016
Topic(s) of this poem: patriotism
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Ajay Srivastava

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