चाहत - पर ये Poem by Ajay Srivastava

चाहत - पर ये

चाहत है खुश रहने की |
पेसा अकेला खुशी और सुख का ठेकेदार नही है |

हॉ हॉ करने से प्यार नही मिल जाता |
ना ही ना ना से ये तो सहमति की राह है |

मुफ्त मे कुछ भी नही मिलता |
पर ये जो जलन है हर किसी के पास मे मुफ्त मे मिलती है |

पसंद हर कोई रखता है |
कठिन राह को चुनना हर किसी की पसंद नही होती |

अकल्पनीय साहस तो देखने को व प्रशसा मिलती है |
पर ये जो सच बोलने वाले कम ही दिखते है हॉ सजा जरूर मिलती है सच बोलने की |

चाहत - पर ये
Monday, March 7, 2016
Topic(s) of this poem: desire
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success