चरम सीमा Poem by Ajay Srivastava

चरम सीमा

बेबसी का हाल है| `
वो वार किए जाते है हम सहे जाते है|

प्रशनो की बोहार है|
हम निरउत्तर हुए जाते है|

उतेजना की हवा चली है|
वो दिल पर वार करते है हन दिल को बहलाए चले जाते है|

उद्धेशय को पाने की चाह उत्तपन्न हुई है|
वो बाधा डाले जाते हम बाधाऔ को दूर किए जाते है|

वो नियमो को अपनी सुविधा के अनुसार बदलवे की चरम सीमी पर है|
हम नियमो को नियमानुसार चलने की है चरम सीमा पर है|

चरम सीमा पर दोनो है|

चरम सीमा
Monday, March 14, 2016
Topic(s) of this poem: spirit
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