रोष Poem by Ajay Srivastava

रोष

ऐ मनुष्य क्यो रोष करता है |
व्यर्थ ही अपनी शक्ति को बहाता है |
ये रोष ही ऐ मनुष्य तेरी सुन्दरता पर ग्रहण लगाता है |
दिन प्रतिदिन शक्ति को कम करता है |
यही रोष नाश का सबसे प्रिय दोस्त है |
रोष को आज से अभी से अपना दुशमन बना ले |
माना कि रोष से दुशमनी करना सरल कार्य नही है |
ऐ मनुष्य प्रयास तो कर, कदम तो बडा रोष पर विजय प्राप्त कर ले |
फिर देख ले अपनी शक्ति का वास्तविक स्वरूप |
साथ ही साथ बुद्धि के दर्शन न मिले तो कहना |

Friday, March 25, 2016
Topic(s) of this poem: anger
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