मातृभूमि Poem by Ajay Srivastava

मातृभूमि

तुम्हारे अस्तित्व का प्रशन है |
मान - सम्मान को दिलाने का |

वर्ष प्रतिवर्ष मान - सम्मान ग्रहण करने पर प्रशन नही |
उन मान - सम्मान के व्यय पर विवाद नही |

जो न धर्म पूछती न ही भेद-भाव करती |
हर वर्ग के व्यक्तित्व को अपना लेती है |
सब को दिल से अपना लेती है |
जो सिर्फ और सिर्फ देती है |

उसी के मान - सम्मान पर वाद-विवाद |

ऐ मनुष्य इतना भी स्वार्थ क्यो कर रखता |
क्यो कर सोच मे डूब जाता है |

मातृभूमि के मान सम्मान प्रश्न पर लगता है |

मातृभूमि
Tuesday, March 29, 2016
Topic(s) of this poem: mother land
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