कटूता Poem by Ajay Srivastava

कटूता

दिल के एक कोने मे छुपि है|
वो है कि बाहर आने को आतूर है|

हर पर्दे को हटाने के त्तपर है|
छुपाने के हर प्रयास को हराती|

ललकारती रोक सकते हो रोक लो पुकारती|
हर दिखावे की सफाई करती है|

मुखोटे को उतार फेकने मे सक्षम है|
वास्तविकता के दर्शन कराती है|

यर्थात के धरातल को स्वीकार करने को विवश करती है|
ऐ मनुष्य तू क्यो कर अपनी कटूता को छुपाता है|

कटूता को छुपाना ऐ मनुष्य तेरा स्वभाव नही है|

कटूता
Monday, April 4, 2016
Topic(s) of this poem: evil
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