समाधान चक्रव्यू Poem by Ajay Srivastava

समाधान चक्रव्यू

प्रचार तन्त्र की हवा चली है|
गिरे हुए को हवा मे स्वपन दिखाने|
अकाश मे रहने वालो को धरातल दिखाने की हवा चली है|
समस्यो को उजागर करने की कला है|

कला जो प्रतिद्वन्दी प्रचार तन्त्र को दोडने निमत्रंण दे |
निमत्रंण जो टी र पी मे क्षेष्ठता सिद्ध कर दे|
क्षेष्ठता जो विग्यपनो को पंक्ति मे खडा कर दे|
पंक्ति जो प्रचार तंत्र की आय की समस्या का समाधान करे|

समाधान जो जन समस्यो को जन प्रतिनिधियो तक पहुचा सके|
जन प्रतिनिधि जो जन समस्याओ पर बहस कर सके|
बहस जो समस्याओ के महाभारत समाधान चक्रव्यू मे प्रवेश करा दे|

समाधान चक्रव्यू
Monday, April 11, 2016
Topic(s) of this poem: media
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Ajay Srivastava

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