पूर्वजन्म की पत्नी
बनारस का अस्सी घाट.शाम को गंगा जी की आरती हो रही थी.मैं आकर चुपचाप घाट की सीङी पर बैठकर आरती देखने लगा.मेरे बगल में एक नवविवाहित स्त्री अपने गोद में दो महिने के बच्चे को लेकर बैठी थी.
मैं आरती देख रहा था कि वह स्त्री बिना कुछ कहे अपने बेटे को मेरी गोद में रख दी.मैं बच्चे को हाथ में लेकर खेलाने लगा.मैं कभी बच्चे को देखता तो कभी उस सुन्दर स्त्री को.एक पल के लिए मुझे लगा जैसे वह स्त्री पूर्वजन्म की मेरी पत्नी रही हो और वह बच्चा मेरा बेटा.
कुछ क्षण के लिए मैंने पितृ सुख का अनुभव किया.कुछ देर बाद मैं बच्चे को उस स्त्री की गोद में रख दिया.फिर हम दोनों मन ही मन एक दूसरे से बातें करने लगें.वहाँ हजारों लोगों की भीङ में ऐसा लग रहा था मानो जन्मों से बिछङी दो आत्माएँ मिल गयी हों.
अब बिछङने का वक्त आ गया.वह स्त्री बच्चे को सम्महालते हुए खङी हुई.मैं भी खङा हो गया.आरती खत्म हो चुकी थी.स्त्री सीङियों से उतरते हुए नीचे जाने लगी.मैं खङा-खङा उसे देखता रहा.अचानक मेरी आखें भर आयी.
वह स्त्री कुछ दूर गयी. रूक कर मेरी तरफ देखी, मैं भी उसे देखा फिर बिना कुछ कहे वह चली गई.
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem