मिलन Poem by Ajay Srivastava

मिलन

पूर्णता की परिधि हो तुम|
जगमग रोशनी का अहसास हो तुम|
आवश्यकता बन गई हो तुम|

पूरी की पूरी क्षद्धा हो तुम|
जहॉ जहॉ भाव वहॉ हो तुम|
आशा की किरण हो तुम|

पूर्णतया विशवास बन गई हो तुम|
जहॉ है चाह वहॉ हो तुम|
अतिश्यक्तियो ये दूर, जरूरत बव गई हो तुम|

पूर्वागाृह और विशवास का सगंम हो तुम|
जब भी, जहॉ भी तुम होती है वहॉ रोशनी की किरण है|
आसमन और धरती के मिलन का मार्ग बन गई हो तुम|

मिलन
Sunday, June 26, 2016
Topic(s) of this poem: worship
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