जब धरती माँ हाथ फैलती है ।
जब मन्द हवा सासो से मिलती है।
जब कोई वीर सपूत देश के लिए बलिदान देता है।
जब किसान अपना पसीना बहाते है अन्न के लिए।
जब कोई किसी असहाय की मदद करता है।
जब हम अपने सार्वजानिक कर्तव्यों को हकीकत का रूप देते है।
जब हम हर गलत कार्य का विरोध करते है।
तब तब अहसास होता है धरती माँ के हाथ फैलाने का कर्ज चूका दिया।
हां तभी एहसास होता अपने देश से प्यार का।
काश की ऐसी हवा प्यार की हर भारत के वासी में बहे।
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