तेरे से अलग होने के ख्याल से Poem by Yashvardhan Goel

तेरे से अलग होने के ख्याल से

कुछ भी तो नहीं था अब
वो तेरी यादें भी
दम तोड़ने लगीं थीं
थकने लगीं थीं

वजह भी तो नहीं मिलती थी
कब तक बेवजह इस तरह
तुझे याद करती रहती

हर रोज़ सुबह को तेरी यादो पे
एक मुट्ठी ख्यालों की डाल रहा था
हर रात को आँशु उसे भीगा
और मजबूत कर रहे थे


कितनी परते तोड़ता
हर रोज़ एक तोड़ता
हर रोज़ एक बढ़ता
किसी दिन दर्द ज्यादा हो जाता
तो उस दिन परत का हिसाब रह जाता
इस तरह न जाने तेरे इंतज़ार में
कितनी पड़ते चढ़ गयी

दर्द है इनके चढ़ने का भी
दर्द है तुझसे बिछड़ने का भी
दर्द है तेरे जाने का
दर्द है उस जगह से आगे बढ़ने का भी
जिस दर्द से खुद को आगे बढ़ाया

अब उम्मीद नहीं है
और अगर हो भी तोह वजह नहीं मिलने देता
पत्थर तोह बन गया वो परत एक टुकड़ा अब
और वज़ह इस वजह का भी दर्द है
अब इस दर्द की वैसे ही आदत हो गयी जैसे तेरी थी
अब इसी से मुहब्बत हो गयी है

बिलकुल वैसे ही डर लगता है
इस दर्द के न होने पे
जैसे तेरे साथ होने पर
तेरे से अलग होने के ख्याल से
मैं बिखर जाता था ! ! !

Saturday, August 13, 2016
Topic(s) of this poem: hindi,lonely,love
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Yashvardhan Goel

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