आदित्य धन Poem by Ajay Srivastava

आदित्य धन

तुम हो तो सब कुछ है।
हर आभाव की पूरक हो तुम।
तुमसे ही परिपूर्णता का अहसास।
तुम ही शक्ति हो।

तुम ही हर किसी विवश करने का सामर्थ्य हो।
तुम ही हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित करने में सक्षम हो।
सब कुछ तुम्हारे पास है।
न जाने क्यों आभाव का अहसास है।

फिर भी न जाने वात्सल्य व प्रेम नहीं दे सकते।
दिल पर लगी चोट की दवा तुम नहीं बना सकते।
सच और नैतिकता से चल नहीं सकते।
अहम को छुपा के तुम रख नहीं सकते।

ऐ आदित्य धन क्यों कर छटपटा रहे हो।
ऐ आदित्य धन क्यों नहीं समझता सब को सब नहीं दिला सकते।

आदित्य धन
Friday, October 7, 2016
Topic(s) of this poem: power
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