दिल को छूने की चाह।
दर्द की परत से होकर जाती है।
जहा परत को हटने को तयार नहीं होती।
वहाँ पर अहसास पर भी परत पड़ जाती है।
हर परत दूसरी परत से हाथ मिला लेती है।
हर सुखद अहसास को दूर करती जाती है।
हर दर्द अपना लगने लगता है।
हर सुख पराया सा लगने लगता है।
ऐसे में दिल हर रौशनी अँधेरी रात लगती है।
हर अँधेरी रात में रौशनी की किरण दिखने लगती है।
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