पल-पल होते सघन तिमिर में
नचती आई एक रश्मि-रेखा
अवसाद अंतस आनंद उत्स को
टूटती आशा ने जब देखा
टूटते द्रुम-दल
मुरझाते किसलय-कल
आनंद विकल हो रहे सकल अब:
बन-बन मिटने के अपूर्व क्रम में
मिट-मिट बनने का नित्य क्रम देखा
राग-द्वेष दाह स्याह हृदय सब
धवल हुए धुलकर मानों अब:
जड़-चेतन के उर में पलते जब
एक ही नित्य स्पंदन देखा
परिमित बंधन में असीम चेतन
विवश-विकल करती थी क्रन्दन
पुलक-अश्रु ढुलकाती अह-रह अब
करुणार्द्र मुंदे पलकों में जब
मुक्ति का पलता शैशव देखा
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