रश्मि-रेखा Poem by Dhananjay Kumar

रश्मि-रेखा

पल-पल होते सघन तिमिर में

नचती आई एक रश्मि-रेखा

अवसाद अंतस आनंद उत्स को

टूटती आशा ने जब देखा


टूटते द्रुम-दल

मुरझाते किसलय-कल

आनंद विकल हो रहे सकल अब:

बन-बन मिटने के अपूर्व क्रम में

मिट-मिट बनने का नित्य क्रम देखा


राग-द्वेष दाह स्याह हृदय सब

धवल हुए धुलकर मानों अब:

जड़-चेतन के उर में पलते जब

एक ही नित्य स्पंदन देखा


परिमित बंधन में असीम चेतन

विवश-विकल करती थी क्रन्दन

पुलक-अश्रु ढुलकाती अह-रह अब

करुणार्द्र मुंदे पलकों में जब

मुक्ति का पलता शैशव देखा

Tuesday, July 4, 2017
Topic(s) of this poem: life
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