तेरी फितरत वही पुरानी Poem by Ajay Kumar Adarsh

तेरी फितरत वही पुरानी

तेरी फितरत वही पुरानी
सब जानी पहचानी है
गिटिर-पिटिर तू बे-वक़्त करता
और करता सब मनमानी है
मर्यादा के जितने मानक
सारे तूने तोड़े हैं
योजना सारे, घरवाली सा,
अधरों में ही छोड़े हैं
कल तक दर्द था तेरे दिल में
भारत के गरीब-किसानो का
आज अचानक फिर क्यूं साहब
अम्बानी से नाता जोड़े हैं
पता नहीं चलने देते तुम,
क्या तेरी कारस्तानी है?
जुमले-बाज़ी रोज़ ही करते,
गढते कैसे कहानी हैं?

Thursday, December 7, 2017
Topic(s) of this poem: political utopia
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Ajay Kumar Adarsh

Ajay Kumar Adarsh

Khagaria (Bihar) / INDIA
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