तेरी फितरत वही पुरानी
सब जानी पहचानी है
गिटिर-पिटिर तू बे-वक़्त करता
और करता सब मनमानी है
मर्यादा के जितने मानक
सारे तूने तोड़े हैं
योजना सारे, घरवाली सा,
अधरों में ही छोड़े हैं
कल तक दर्द था तेरे दिल में
भारत के गरीब-किसानो का
आज अचानक फिर क्यूं साहब
अम्बानी से नाता जोड़े हैं
पता नहीं चलने देते तुम,
क्या तेरी कारस्तानी है?
जुमले-बाज़ी रोज़ ही करते,
गढते कैसे कहानी हैं?
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem