आइस्क्रीम Poem by Raj Swami

आइस्क्रीम

Rating: 5.0

आइस्क्रीम दिला दो माँ
आज दूध वाली लाया है ।
देखो ना लार टपक रही है
ठंडी-ठंडी मीठी मीठी है
कितनी स्वाद होती है
तुम तो जानती हो माँ ।
जल्दी से एक रुपया दो
कहीं वो चला ना जाए ।
सब बच्चे कह रहे थे
एक रूपये में असली
आइसक्रीम देता है ये।
नारियल भी डालता है
काजू भी डालता है ।
सब खाते हैं मेरा मन भी करता है
कोई मुझे क्यूँ नहीं देता माँ ।
मैं सबको मेरे खिलौने देता हुँ
सबसे हँसकर कहता हुँ
आओ खेलें हमारे घर पर ।
तुम चुप क्यूँ हो माँ
कुछ तो बोलो
मैं और किससे कहुँ
मेरा तो सबकुछ तुम ही हो माँ ।
मुझसे बात करो प्यारी माँ
एक बात बताऊँ तुम्हें
मैं तो ऐसे ही मजाक कर रहा था
मुझे आइसक्रीम अच्छी नहीं लगती ।

राज स्वामी

आइस्क्रीम
Tuesday, June 12, 2018
Topic(s) of this poem: mother and child
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Ice cream is a heart touching poem
Please read & vote for me.
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 12 June 2018

Absolutely, the poem shows the sensibility of a child who wants to have ice-cream and expresses his desire in so may ways. But then, stung by reality, he feigns as if he dislikes ice-cream before his mother. Thanks, Dear poet, for sharing this beautiful poem.

2 0 Reply
Raj Swami 12 June 2018

Thank you sir Have nice day

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