सजाकर - सवारकर चेहरा
निकला था घर से
चेहरों के बीच एक चेहरा खोजने के लिए
उसने,
उसके निगाहें हर पल पूरी रात जुस्तजू करती रही
उस चेहरे की
लेकिन ओ चेहरा नहीं था
उस चेहरो के बीच,
जिसके दीदार के लिए
ये निगाहें
बेचैन एवं परेशान थी,
जैसे एक भक्त परेशान हो
भगवान के दर्शन के लिए।
अंततः वह चेहरा नहीं दिखी
दिल बेचैन
और दिमाग अशांत सा हो गया,
समुंदर के खतरनाक लहरों की तरह,
मिलन न होने के व्यथा से
मन ने कहा कि अब कभी
बात ही न करूंगा उससे
और मारूंगा थप्पर खींचकर
परंतु जब मिला
तो हाथ उठ ना सका
और मन रोक ना सका दिल को,
निगाहें निहारती रह गई
राम के निगाहें की तरह
शायद यही प्यार था।
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Very laudable