उजाले की आस में... Poem by VARSHA SINGH

उजाले की आस में...

उजाले की आस में

दिल को जलाए बैठे हैं

हो जाए अगर उजाला

दिल राख होने से बच जाए;

उम्मीद में उजाले की

कभी दिल को था रखा पानी में

कि एक दिन सूरज की तरह

निकले उजाला पानी से;

पर पानी में दिल यूँ डूबा

कि हुआ हर तिनका हमसे जुदा,

और आज का ये पल है

कि दिल को जला रहे हैं

उजाले की आस में

खुद को सता रहे हैं;

कब तक छुपायें खुद को

खुद के ही अंधेरों से

कि अँधेरे भी अब तो खुद के

ढूंढे हैं बस उजाले।

-वर्षा सिंह

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Jharkhand
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