कैसे उसे मैं ढूंढूं...? Poem by VARSHA SINGH

कैसे उसे मैं ढूंढूं...?

उम्मीदों की तलहटी से
यादों की बेबसी से
वादों की बेरुखी से
ख़्वाबों की बेखुदी से

एक बूँद टिपटिपाकर
आँखों से लड़खड़ाकर
एक पल में कर उजागर
दिल में छुपी थी जाकर

मेरे सोच की शिराएँ
खामोशी की गवाहें
मेरे मन की वो निगाहें
करती थी जो फनाएं

दिल का हर एक मंज़र
अब सर्द हो चला है
कैसे उसे मैं ढूंढूं
दे दूं उसे उजाला?

- वर्षा सिंह

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Jharkhand
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