दुख Poem by Ajay Srivastava

दुख

जीवन में बहुँत है परेशानी
जीवन में सुख का अनुभव
मनुष्य तो कर ही नही पाता
जीवन में बहुँत सुख तो दूर की बात है

प्रभु के पास इतना समय नही है दुख दे
यहँ तो मनुष्य ही है
जो दुख देने के लिय
समय निकाल लेता है

सच तो यह है हम सब की
समझ सही दिशा में नही हो पाती
और हम सब दूसरो पर दोशारोपण लगाते है
यही दुख कारण बन जाता है

COMMENTS OF THE POEM
Vaishnavi Singh 28 March 2015

बहुत सुंदर कविता है.

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