पल पल नए चरे गढ़ता है ईश्वर
इन नए चहेरों मे, नित नए भाव मढ़ता है ईश्वर
कहीं बाल सुलभ मन किलकारी करता है
कहीं जर जर बुढ़ापा आहें भरता है
पल पल नए चहेरों गढ़ता है ईश्वर................
कहीं पूर्ण संपन्न पुरूष संतुष्टि ढूँढ़ता है
कहीं एक भूखा पेट दो रोटी को तड़पता है
पल पल नए चहेरों गढ़ता है ईश्वर................
कहीं कोई दूसरों मे अपनी दुनिया ढूँढ़ता है
कहीं कोई अपनी खुशियों के लिए दूसरों की खुशयां छीनता है
पल पल नए चहेरों गढ़ता है ईश्वर................
कहीं झूठे प्रेम का फैला बाज़ार है
कहीं सच्चे प्रेम का बड़ा बुरा हाल है
पल पल नए चहेरों गढ़ता है ईश्वर................
कहीं पैसों पे रिश्ते पलते है
कहीं पैसों पे बने रिश्ते खलते है
पल पल नए चहेरों गढ़ता है ईश्वर................
कहीं मान के लिए कोई अपना ईमान खो देता है
कहीं पद पाने के लिए वो बेईमान होता है
पल पल नए चहेरों गढ़ता है ईश्वर................
कहीं वो दूसरों की जीत पे जलता तड़पता है
कहीं वो अपनी हार पे भी नहीं आह बहरता है
पल पल नए चहेरों गढ़ता है ईश्वर................
सब कर्मो का जंजाल है
हे ईश्वर, तेरी माया से बचे रहें, बस तेरा ही ये उपकार है
पल पल नए चहेरों गढ़ता है ईश्वर................
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem