जीना हुआ मुहाल Poem by Priyanka Gupta

जीना हुआ मुहाल

Rating: 5.0

हर रोज़ घट रही घटनाएं
रात तो है ही रात
दिन में भी अँधेरा पैर फैलाये

कही अपहरण
कहीं छीने कोई सांसो की डोर
न जाने पापी मन में
पनप रही क्या खोट

लूटपाट और मारामारी
आखिर क्या है ये बीमारी
इंसान इंसानियत खोता जा रहा
आपे से बहार होता जा रहा

कहीं कोई नौकरी से हारा
कोई हारा अपना प्यार
हार से कोई सबक न सीखा
और हारकर करने लगे अपराध

पर सत्य यही है आज के दौर का
कि वो वक़्त कुछ और था, पर आज
ज़िन्दगी में उथल पुथल मचाये
इंसान का जीना हुआ मुहाल

Friday, October 17, 2014
Topic(s) of this poem: life
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