आज कल ऐसा ही ज़माना है
हंसना है, रोना रुलाना है
बांटते रह जाओगे कभी तुम गम अपने
कभी खुशियों का भी न कोई ठिकाना है
मिल जाते हैं बिन मांगे भी दुःख इतने
खुशियाँ मांगने पर भी नहीं आती है
रह गयी है होंठों पर मुस्कुराहट नकली
असली तो आँखों में झलक आती है
हँसते हैं लोग सब दिखावे के लिए
हँसते हैं कईं अपने छिपाने को गम
कोई करता इज़हार अपनी सच्ची ख़ुशी का
कभी हंसी के मुखौटे ओढ़े खड़े हैं हम
होती जब बरसात ग़मों की
चेहरे तब मुरझायें
सोचते... कुछ तो हो ऐसा
कि खुशियां लौट आएं
५० प्रतिशत खेल तक़दीर का
५० प्रतिशत आप बनाने से बन जाये
इस रंगों भरी दुनिया में तू
हंसना हँसाना सीख ले
गम को भी सीने लगाना सीख ले
न जाने कब तक है ये ज़िन्दगी
इसे खुद ही महकाना सीख ले...
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