जलाता है कोई Poem by dhirajkumar taksande

जलाता है कोई

प्यारा नही फिर, दुलार देता है कोई
सासे जीवन की, मुझसे लेता है कोई

बाहो के घेरोसे लिपटता है कोई
तन्हाई मे मुझसे सिमटता कोई
हर पल है जीना, मौत से बेखबर
पास भगवन मेरे, बैठता है कोई

भुजाओ को मेरे छाटता है कोई
अस्थीयो को मेरे काटता है कोई
औरो के लीए मरना, यही है जीना
जीतेजी अंग मेरे बाटता है कोई

चारा हु मै मुझपे पलता है कोई
देखकर मुझे राह चलता है कोई
राख मेरे बिना तेरी, होने न पाये
मृतको के संग जलाता है कोई

Sunday, January 4, 2015
Topic(s) of this poem: tree
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