नव जीवन Poem by Shobha Khare

नव जीवन

जीवन की आख़िरी सांस तक
खतम न होगी खोज तुम्हारी
नव जीवन के नव प्रकाश मे
जाने की मेरी तैयारी I
देखूँगी नूतन द्र्श्य वहाँ
आलोक नया मै पाऊँगी
साथ तुम्हारे महा मिलन के
बंधन मे बंध जाऊँगी I
कहीं नहीं है अंत तुम्हारा
खत्म न होगी खोज तुम्हारी
नित नवीन लीला रचते तुम
हर लीला लगती है प्यारी II

Monday, January 12, 2015
Topic(s) of this poem: life
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