मुसाफ़िर हूँ तेरे दर पर मैं इक फरियाद लाया हूँ Poem by Abhishek Omprakash Mishra

मुसाफ़िर हूँ तेरे दर पर मैं इक फरियाद लाया हूँ

मुसाफ़िर हूँ तेरे दर पर मैं इक फरियाद लाया हूँ
दफन हैं कब से सीने में किसी की याद लाया हूँ
जो पूछेगा खुदा मुझसे, कहो क्या साथ लाये हो
तो कह दूँगा कि देने को, ये दिल बर्बाद लाया हूँ
'कवि अभिषेक ओमप्रकाश मिश्रा '

Tuesday, August 11, 2015
Topic(s) of this poem: love and art
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