न जाने क्यों हवाओं में उसी का अक्स बहता है
जमाना भी मुझे अब तो, हुआ मदहोश कहता है
मैं उसके साथ ना होने पे, क्यों बेचैन हूँ जबकि
वो जन्मों से, जो मेरा है, मेरे दिल में ही रहता है
'कवि अभिषेक ओमप्रकाश मिश्रा '
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अत्यंत मधुर एवम् अद्वितीय कविता जिसे बार बार पढ़ने को दिल करे. धन्यवाद, मित्र.