तेरी मेरी प्रेम मिलन का
बाचा बंधन देह संगम का
उत्कृष्ट योग नव रचना का
मधूर महक फैला कुसुम का ।
देख कैसे पलभर में भी
परायी भी बनती हैं अपनी
और मुझे क्यो ऐसा लगता
यहीं हैं मिलन बिन्दु जीवन का ।
तू हीं मेरा मंजिल
तू हीं हैं मेरा भविष्य
अस्तित्व मेरा क्पा रहेगा
अगर तू हीं ना हो तो ।
तू हीं मेरा चेतना
और आरम्भ भी तू हैं
आरती में तेरी उतारता हूँ
दरकार नहीं कोई और देवी ।
नींद में भी तुम्हे देखता हूं
तंद्रा में भी तुम्हे हीं देखता हूं
जिधर जाता, उधर पाता
तू हीं तू, तू हीं तू ।
रचनाकारः—तुल्सी श्रेष्ठ
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