||बिन पतवार की कश्ती है जिंदगी|| Poem by Anand Prabhat Mishra

||बिन पतवार की कश्ती है जिंदगी||

बिन पतवार की कश्ती है जिंदगी
समय की धार पर बहती है जिंदगी
हिलकोरे खाती डगमगाती है जिंदगी
मगर निरंतर बहती जाती है जिंदगी
कहीं गांव के बगीचे में सोई है जिंदगी
कहीं शहर की भीड़ में खोई है जिंदगी
कहीं पेड़ की छाँव ढूंढे जिंदगी
कहीं शहर में गाँव ढूंढे जिंदगी
कहीं शोर गुल से परेशान हैं जिंदगी
कहीं खेत खलिहान मचान है जिंदगी
कहीं खाट पर बैठ रात आसमान निहारी है जिंदगी
कहीं खिड़कीयों से ताक रात काटी है जिंदगी
कहीं कल कल बहती नदियां में सीप है जिंदगी
कहीं शहर के बोतलों में बंद एक टीस है जिंदगी
कहीं सहरा में उम्मीदों की बूंद ओस है जिंदगी
कहीं साहिलों पर प्यासी रेत में रोष है जिंदगी
कहीं दाने दाने को तरसी है जिंदगी
कहीं ताज़े बासी में उलझी है जिंदगी
कहीं खुश तो कहीं रोती बिलखती तड़पती है जिंदगी
लेकिन एक पल कब ठहरती है जिंदगी
बिन पतवार की कश्ती है जिंदगी
समय की धार पर बहती है जिंदगी
बिन पतवार की कश्ती है जिंदगी
समय की धार पर बहती है जिंदगी


: -आनंद प्रभात मिश्र

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