गुमशुदा हुए जो पहर जिदंगी के Poem by Anand Prabhat Mishra

गुमशुदा हुए जो पहर जिदंगी के

गुमशुदा हुए जो पहर जिदंगी के
याद आती है वो पपिहिया से भोर..
जो सुने कर गए शाम को भूलकर दरख़्त के बसेरे
याद आती है वो लौटते पंक्षियों से शाम की शोर
चांद से बंधा एक धागा है तुम्हारी यादों का
उस डोरी की तुम हो दूसरी छोर
अब न आओगे, न रखूं उम्मीद कोई
न बारिश हो प्रेम की न नाचे मन का मोर
एक अधूरी अभिलाषा जैसे सूखती नदी
एक प्रेम का प्यासा हृदय देता निचोड़
अमावश की काली रात का सूनापन लिए
चांद की आकांक्षाओं में रात जागता चकोर
मोम से भी नाजुक हृदय की धरातल
सूखे जो तरलता प्रेम की, हुआ बंजर कठोर
धुंधला आसमान है खाली इस रात
न जाने कहां गए वो चांद वो चकोर
हर पहर वही सन्नाटा न कटी रात न हुआ भोर
याद आती है बस वही पहर
याद आती है पपिहिया से भोर...



: - आनन्द प्रभात मिश्रा

गुमशुदा हुए जो पहर जिदंगी के
Friday, September 27, 2024
Topic(s) of this poem: hindi,poetry
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