जब तेरे चेहरे पर मुस्कान देखा
फिर न नफा न नुकसान देखा
कर दिए निवेश अपनी भावनाओं को
फिर रास्ते घर गलियां हर जगह सुनसान देखा
आंखे मूंद कर महसूस किए तुम्हें
खुली आंखों ने चेहरा अनजान देखा
जिस ह्रदय में महफूज़ किए तुम्हारी चाहतों को
उस ह्रदय में अपनी भावनाओं का शमशान देखा
लूटी हुई बस्ती में आग लगाने जैसा
एक हादसा हुआ टूटे दिल को फिर से तोड़ने जैसा
लहरों की मोहब्बत में साहिल इंतज़ार कर बैठा
लहरों की फितरत नहीं साहिलों पर ठहरने जैसा
कुछ पराए अपने से भी ज्यादा करीब हुए
कुछ अपनो ने दिखाया चेहरा पराए जैसा
हमने प्रेम में प्राथमिकता दी तुम्हारी स्वतंत्रता को
तुमने रखा मुझे गैरों में और समझा औरों जैसा, ,
: -आनंद प्रभात मिश्रा
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