|| मेरे मन की उलझनों को तुम || Poem by Anand Prabhat Mishra

|| मेरे मन की उलझनों को तुम ||

मेरे मन की उलझनों को तुम
न हीं जानों तो बेहतर है
सितार की तुम धुन सुनो
उँगलियों का हाल
न हीं जानों तो बेहतर है
सबसे बातें करो और हाँ थोड़ी मुझसे भी
मगर मेरी मुस्कुराहट में अपनी बातों का आशय
न हीं जानों तो बेहतर है
मुझे अकेला छोड़ दो, मुझे रोने दो
मेरे आंसुओं की वजह
न हीं जानों तो बेहतर है
चाहे जितने पल बिताओ मेरे साथ
हंसो मुस्कुराओ किस्से कहानियाँ सुनाओ
मग़र मेरे ख़ालीपन में, मेरे टूटते उम्मीदों को
न हीं जानों तो बेहतर है
मेरे मन की उलझनों को तुम
न हीं जानों तो बेहतर है

- (आनन्द प्रभात मिश्र)

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