जीवन का 'सांवलापन' Poem by Anand Prabhat Mishra

जीवन का 'सांवलापन'

जीवन के इस सांवलेपन को
मैं भला निखारने की कोशिश क्यूँ करूँ?
हर रंग में खूबसूरती होती है सुना है
मै उन्हें छुपाने की कोशिश क्यूँ करूँ?
जीवन के हर स्वरूप में कुछ बातें होती हैं
सांवलापन को प्रश्नचिन्ह से अर्पण क्यूँ करूँ?
दूरदर्शिता है तो जीवन एक लंबी कहानी है
नजरों में छुपा समन्दर सा गहरा पानी है
उलझनों से सवाल किया नही करते
समर्पण को संशय भरी नजरों से देखा नही करते
क्रोध से उत्पन्न ज्वालाओं को रौशनी का स्त्रोत क्यूँ कहूँ?
जिसके उजाले में अपने पराए से दिखने लगें
ऐसी रौशनी से बेहतर थोड़ी भ्रम की अंधकार सही
जो तपिश में छाँव दे, उस छाँव में भी सांवलापन है
तो फिर उस उजाले में सुकून का इंतजार क्यूँ करूँ?
तीनो लोकों के स्वामी ने स्वयं सांवलेपन को चुना
तो फिर राधिका के प्रेम पर सवाल क्यूँ करूँ?
जीवन के इस सांवलेपन को
मैं भला निखारने की कोशिश क्यूँ करूँ?

|| आनन्द प्रभात मिश्रा ||

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