मर्यादाओं की परिभाषा को
जीवन का यथार्थ मान कर पली बढ़ी हूँ
हाँ मैं स्त्री हूँ..
थोड़ी नादानियां हम में भी होंगीं
कुछ गलतियां ग़र हम से कभी हो जाए तो
सवाल मेरे परवरिश पर उठेंगीं, क्यूँ?
मै निर्भीक हूँ, मजबूत हूँ,
इतिहास के पन्नों में अंकित वीरांगनाओं की प्रमाण हूँ
फिर भी मैं मर्दों के विपरीत उदहारण की पात्र हूँ क्यूँ?
स्त्री हूँ मगर मर्द की बराबरी नहीं कर सकती
इन धारणाओं का खण्डन करूँ ग़र तो
स्वाभिमान की बलि चढाई जाऊँगी क्यूँ?
किसी की साहस से टकराउं,
या अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाऊं
तब मेरी आवाज दबाई जायेगी
फिर एक स्त्री को स्त्री का परिचय दे कर
मेरे अंतर्मन में कमजोर छवि बनाई जाएगी, क्यूँ?
ओ मजबूत इरादों वाले साहसी पुरुष?
घोड़े पर बैठ राजा होने की ठाठ दिखाते हो?
पर उन लाखों रूपए पर ही तुम तैयार हुए हो
एक स्त्री के रक्षक बन के आए हो?
तुम मुझे क्या न्याय दिलाओगे
तुम पहले ही न्याय को दहलीज पर छोड़ आये हो
तुम क्या दोगे मुझे?
वसीहत, जमीन या जिंदगी अपनी?
यह सोचने के लिए वक़्त तुम्हारे पास फिर भी होंगीं
पर जरा सोचो
मर्यादा के आर में दुनिया ने
मेरी आजादी का हनन कर लिया है
मेरी जिंदगी मेरी नहीं यह तो बचपन में हीं
दुनिया ने तय कर दिया है
नहीं जीना जिंदगी अपने हिसाब से
अगर जीने की जिद्द करूँ कभी
अपने आशियाने से मुझे निकाल दोगे
मेरे प्रेम को फिर बेईमान ठहरा दोगे तुम
बिना मेरी मर्जी सुने मै ठुकराई जाउंगी क्यूँ?
भगवान ने हमे दुनिया को सुन्दर बनाने भेजा है
मनुष्य से ही जीवन की लकीर को जमीं पर खिंचा है
प्रेम की बरखा से कण कण को सींचा है
फिर भेद भाव, फिर इतनी नफरत क्यूँ?
फिर कहाँ से वैचारिक अलगाव की बू आती है?
फिर क्यूँ स्त्री दुनिया की मानक रेखाओं पर परखी जाती है?
फिर क्यूँ श्रृंगार को किसी की कमजोरी साबित कर दी जाती है?
फिर क्यूँ स्त्री और पुरुष के साहस की मापदण्ड की जाती है?
आखिर कितनी मानक रेखाएं हैं तुम्हारी दुनिया में?
किन किन पर मुझे उतारोगे?
पुरुष प्रधान दुनिया बना कर
आखिर सिद्ध क्या कर पाओगे?
स्त्रियों के बिना तुम्हारी वजूद नहीं
मर्द कहते हो ग़र खुद को तो
वो स्त्री ने हीं तुम्हे अस्तित्व में लाया है
तुम्हे पोश पाल कर एक मर्द बनाया है
जीवन के इस रण क्षेत्र में
स्त्री पुरुष में भेद न करना
तुम पुरुष होने से कहीं ज्यादा
एक स्त्री के बलिदान पर गर्व करना
|| आनन्द प्रभात मिश्र ||
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