प्रेम और पैसा? Poem by Anand Prabhat Mishra

प्रेम और पैसा?

माना तुम बहुत प्यार कर लोगे
पैसे कहां से लाओगे?
माना तुम हर बात मानोगे
पैसे कहां से लाओगे?
माना तुम हर जरूरतें पूरी करोगे
पैसे कहां से लाओगे?
माना तुम पसंद की बिंदी, साड़ी, चूड़ी ला दोगे
पैसे कहां से लाओगे?
माना तुम दुनिया की हर महंगी वस्तु दिला दोगे
पैसे कहां से लाओगे?
माना तुम खूबसूरत उपहार दोगे
पैसे कहां से लाओगे?
माना तुम अपना जीवन समर्पित कर दोगे
पैसे कहां से लाओगे?
इसके लिए कमाना पड़ता है
प्रेम करने से पहले,
सोचना पड़ता है
पैसे कहां से लाओगे?


: - आनन्द प्रभात मिश्रा

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
प्रेम का संबंध ग़रीबी से नहीं है, कर सकते हो, अगर अंतिम परिणाम सहने की क्षमता है तब, अन्यथा ग़रीबी में ऐसी भूल न करना, तिरस्कार बहुत गहरी दाग देती है कोमल हृदय के सादे पन्ने पर ।
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