तू ख़ुशबू सी मेरे मन की फ़िज़ाओं में
अंतर्मन को महका जाती है
तू सांसों की नर्म हवाओं में
हृदय को छूकर गुज़र जाती है
तू पलकों पर बैठी अश्कों की बूंदों में
अश्कों को मोती कर जाती है
तू होठों पर बैठी नग़मों की गूँजों में
ख़ामोशी में संगीत भर जाती है
तू सूरज की पहली किरणों में
दिल की जमीं पर उतर आती है
तू रात के अंधियारों में
यादों की चराग़ बन जाती है
तू दिल के आँगन में
तितली बनकर बैठ जाती है
प्रेम के उन पंखुड़ियों में
अपने होठों का मिठास छोड़ जाती है
तू ख़ुशबू सी मेरे मन की फ़िज़ाओं में
अंतर्मन को महका जाती है
||आनन्द प्रभात मिश्र||
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