मुझे मिलना है तुमसे Poem by Anand Prabhat Mishra

मुझे मिलना है तुमसे

मुझे मिलना है तुमसे..
वहां नहीं जहां तुम सिर्फ मुस्कुराती हो
वहां भी नहीं जहां लोग तुम्हारी तारीफ करतें हैं
वहां भी नहीं जहां शोर हो बनावटी दुनिया का
मुझे मिलना है तुमसे..
वहां जहां तुम अपनी दुख छुपा कर रखती हो
वहां जहां तुम हंसी के पीछे खामोशी रखती हो
वहां जहां तुम आंसुओं को रोकती नहीं
वहां जहां तुम खालीपन से बातें करती हो
मुझे मिलना है तुमसे..
ताकि मैं तुम्हें हर दिशाओं से देख सकूं
ताकि मैं तुम्हारी मुस्कुराहट को भेद कर
पलकों के कोरो में छुपे आंसू को देख सकूं
जरूरी नहीं हर दिन आओ मगर आओ तो सही
मुझे मिलना है तुमसे..


-आनंद प्रभात मिश्रा

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