मुस्कान Poem by Anand Prabhat Mishra

मुस्कान

तुम्हारी मुस्कान में न जाने कितनी कविताएं छुपी हैं
न जाने कितने शब्द, कितनी पंक्तियां हैं
मैं जो सारी उम्र लिखूंगा
वो बस, ,
तुम्हारी मुस्कान की एक छोटी सी झलक मात्र होगी
और जो तुम सारी उम्र मुस्कुराओगी
सोचों कई युग तक लिखी जाओगी
फिर भी कुछ शेष रह जाएगा
जिसे लिखा नहीं जा सकता
बस हृदय में उतार लेना होगा
जैसी हो तुम बस वैसी हीं
ताकि अगले जन्म में
मैं तुम्हें लिखने से ज्यादा
तुम्हारी तस्वीर बनाया करूं
और कहूं ये हुनर नहीं
कोई रिश्ता है जो जन्मों से
मेरे व्यक्तित्व को निखार रहा है...


-आनंद प्रभात मिश्रा

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