Astitwa (Hindi) Poem by Malay Roychoudhury

Astitwa (Hindi)

अस्तित्व
सन्न - आधी रात को दरवाजे पर दस्तक.
बदलना है तुम्हे, एक विचाराधीन कैदी को.
क्या मैं कमीज़ पहन लूँ? कुछ कौर खा लूँ?
या छत के रास्ते निकल जाऊँ?
टूटते हैं दरवाजे के पल्ले, और झड़ती हैं पलस्तर की चिपड़ियाँ;
नकाबपोश आते हैं अंदर और सवालों की झड़ियाँ-
"नाम क्या है, उस भेंगे का
कहाँ छुपा है वो?
जल्दी बताओ हमें, वर्ना हमारे साथ आओ! "
भयाक्रांत गले से कहता हूँ मैं: "मालिक,
कल सूर्योदय के वक्त,
उसे भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला".

Friday, January 31, 2020
Topic(s) of this poem: existentialism
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