तू एक कमजोर मासूम को जानवरों सा नोचता है
और फिर भी तू खुदको इंसान कहता है?
तू एक अबला को हवस का खिलौना समझता
और फिर भी तू खुदको इंसान कहता है?
तेरी सोच से
हेवानियत की बू आत़ी है..................
और धिक्कार है एसी जवानी पर
जो इंसान को जानवर बनाती है...............
तेरे रगों मे बहते विष को
तेरे इरादों की
वेहाशी साजिश को
जिन्दा जलाना है.......................
इस बार
अत्याचार तूने किया
अब तुझे भी उस दर्द के मंजर से
वाकिफ करना है................................
है थू इस कायर समाज पे
गर तू जीने का हक़दार बना रहा
और फिर तू जी भी ले जितना
तुझे भी मालूम है, तू पल पल है मर रहा..........................
तुझे उस मासूम की पुकार
हर दम सताएगी
तुझे इस जनम क्या
ये वो रॉ रॉ आग है
जो प्रलय पर्यन्त तुझे जलाएगी.......................
तेरी रूह भी कांप जाएगी
तू तड़पता जायेगा
तेरे कर्मो का ये कारनामा
तुझे इतना जलाएगा.......................
तेरी मदहोशी की दरिंदगी
जब तेरी हेवानियत की दास्ताँ सुनाएगी
कैसे उस मासूम की आह तूने ना सुनी
कैसे उस मासूम की दर्द भरी पुकार रही अनसुनी...................
हमे तो रह रह कर वो रात याद आती है
उनसे पूछो, जिसकी अपनी थी वो
उसकी माँ, जिसको उसकी याद
अब पल पल रुलाती है.........................
ये वो बगावत नहीं
जो तुम दबा देते हो
ये वो विद्रोह भी नहीं
जीसे तुम असंविधानिक सोच, कहते हो....................
ये अत्याचार वो करते है
जो हमे कमजोर समझते है
ये व्यभिचार अभी किसी अबला के साथ
हो रहा होगा........................
ये जब तक
होते रहेगा
जब तक
मेरे अन्दर का विद्रोही सोते रहेगा..........................
यदि अब इन्साफ न हुआ तो
तो इन्साफ की राह खुद बनायेंगे
जरूरत पड़ी तो
इस हुकूमत के कानून को कानून सिखायेंगे........................
अब वो अबला अकेली नहीं रहेगी
उसके संग एक अनजान संरक्षक चलेगा
यदि ये संकल्प हर सख्स ले
तो ये दुराचार थम कर रहेगा...................................
ये वो ताकत है
जिसके सामने एक इंसान क्या खुद हेवान भी झुकेगा
और फिर कोई परिवार अपनी
दामिनी की परवाह मे यूं न सहमेगा..........................
' शिव काव्य लहरी '
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