दिल की सरहद (DIL KI SARHAD) Poem by Nirvaan Babbar

दिल की सरहद (DIL KI SARHAD)

दिल की सरहद, कभी किसी को, मिली नहीं,
क्या करें, क्या नहीं, कुछ भी किसी को, सूझे नहीं,

इश्क जज़्बा है, जो वक़्त का मोहताज नहीं,
लाख पर्दों मैं, इसको छुपालो, रहमत से इसकी, कोई बचता नहीं,

राज़ दिल के, दिल मैं ही रखना,
वरना, जग हसाई के क़ाबिल, हो जाओगे,

इश्क, दिल और दिल की रहमत,
निभाओ इश्क और इसक के नाते, वरना, फ़ना हो जाओगे,

दिल मैं, जग भी, सारा का सारा सिमट जाएगा,
कोशिश सनम कुछ तो करो, वरना, ऐसा - कैसे हो पाएगा,

इश्क इतना, इन फिज़ाओं मैं है,
जिसमें, ख़ुदा भी, समां जाएगा,

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