बेपरवाह सी मोहब्बत उसकी, मेरी बेपनाह सी!
उसकी बेपरवाही और मेरी बेपानाही जब आपस में मोहब्बत कर बैठे,
तो बस क्या था
बस तबाही ही तबाही
कुछ तो उसकी बेपरवाही मार गई तो कुछ जुदाई और जो थोड़ा बहुत बचा था मुझ में, उसे तन्हाई
कहता है बहुत प्यार है मुझे तुझसे
फिर भी दूर रह पाता है मुझ से
मैं इन्तेज़ार करती रहती हूँ, उसकी हर बात का ऐतबार करती रहती हूँ
शायद यही बात है कि मोहब्बत बेपनाह की है उस से
तो उसकी बेपरवाही समझना होगा
उसकी इस बात को नज़र अंदाज करना होगा
यह कैसी बेपरवाही है जिसमें परवाह भी नज़र आती है
ज़्यादा तो नही लेकिन हर बार नज़र आ जाती है
यह मोहब्बत भी क्या चीज़ है या रब
बेपरवाही और बेपनाही आपस में मीत हों या रब
दोनों एक दूजे के बिना रह भी नहीं पाते
लेकिन दोनों की टकरार में जो दर्द होता है, वो कह नहीं पाते
लेकिन गर...
यह जो बेपरवाही है ना, हर बार रुला देती है
तो कमबख्त बेपानाही, वो बस हर बार, बार बार मना लेती है!
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