नभ से मोती, गिरने लगे हैं, भीगी धरा निराली है,
व्याकुल मन मेरा है तरसे, कैसी छटा निराली है,
रोम-रोम, तन का भीगा है, अंतर मैं ऋतू, सुहानी है,
किस विधि अपना, मन बहलाएं, बन बैठी ऋतू, कहानी है,
मार्ग प्रेम का भया कठिन है, अब अश्रु बीच डुबोता है,
प्रेम मिले जितना भी राही, उतना कम ही होता है,
शून्य सा जीवन, मेरा प्रियवर, सार समस्त संजोए है,
क्या खोने से डरते हम जब, कुछ भी नहीं पा पाएं हैं,
शोभा प्रेम की इतनी न्यारी, हर आभा इसमें समाई है,
संचित क्या करना है बाकी जब, मिलनी बस रुसवाई है,
निर्वान बब्बर
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