The Banks Of A River Poem by Sanjeev Kumar

The Banks Of A River

किनारे ने ना जाने,
किनारे से क्या कहा?
कोई ना जान पाया,
आखिर अब तक क्या कहा?

देखते तो सब हैं मगर,
मगर कभी ये ना सोचा,
के आखिर दोनों ने क्या कहा?

थे साथ जो कल तक,
आज शायद अलग हुए,
दो किनारों की तरह,
फ़ासले इतने ही हैं,
दोनों के बीच आज,
बस दो किनारों की तरह।

क्यों ना करें कुछ ऐसा,
बन जाएँ वोह साथ,
मिल जाएँ दो हाथ,
बह चले जल की धारा,
सफ़र हो जाए सुनहरा,
मिल पाए जीवन का किनारा।

Copyright © 2012 Sanjeev Kumar

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Sanjeev Kumar

Sanjeev Kumar

Jamshedpur, India
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