चाँदिनी में फिर भीगी हुई है रात। Poem by Shubham Praveen

चाँदिनी में फिर भीगी हुई है रात।

Rating: 5.0

चाँदिनी में फिर भीगी हुई है रात,
उन्मुक्त गगन में ज्यादा निखरी हुई है रात,
ख़ुशी में झूम रहे है इसके सरे चाहने वाले..
पेड़, पहाड़ नदियाँ और तालाब।

पास बिठा कर आज लोरी सुना रही है,
एसा लगता है मानो रूठे हुयों को मना रही है,
शांत है चंचल सी हंसी लपेटे हुए,
इठलाती है, शर्माती है, मनमोहित कर जाती है,
इसकी सुन्दरता की कोई ना सीमा आज,
चाँदिनी में फिर भीगी हुई है रात।

चाँद की दीवानी इस रात को कोई न रोके,
की संभल संभल के संवर रही है रात।
तारे झूम रहे है मनो बरात निकल रही हो,
और चंदिनी की दावत बट रही हो ।
कितने अरसे के बाद आज फिर,
चाँदिनी में भीगी हुई है रात।

बादलो ने किया है धोका, अपना पर्दा हटा दिया,
दुनिया से भी ना बांटा जाये उससे चाँद आज,
रूठ के जा बैठी है वो कोने में,
और छुप छुप के आते देख रही है चाँद को अपने पास,

ईर्ष्या में भी प्यार बरसाती है,
यह अपनी खुशियाँ सबसे बंटती है..
ले आओ अपनी खली गगरियाँ सामने,
की न जाने अब कब होगी इतनी मेहरबान ये रात ।

चाँदिनी में आज फिर भीगी हुई है रात।

चाँदिनी में फिर भीगी हुई है रात।
Monday, September 7, 2015
Topic(s) of this poem: hindi,love and art,nature,night
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 07 September 2015

मोती जैसे शब्दों द्वारा चाँदनी रात का आपने जो चित्र खींचा है, वह मनोहर ही नहीं बल्कि अलौकिक है. धन्यवाद. एक छोटा सा उद्धरण: चाँदिनी में आज फिर भीगी हुई है रात /.....पेड़, पहाड़ नदियाँ और तालाब / यह अपनी खुशियाँ सबसे बाँटती है / ले आओ अपनी खली गगरियाँ सामने,

2 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success