कल कल कल कब आएगा ये कल Poem by rishabh sethia

कल कल कल कब आएगा ये कल

Rating: 5.0

कल कल कल कब आएगा ये कल,
जिंदगी बीत जाती है। नही आता तो बस ये कल! !
अंधेरी रात के बाद आता है नया सवेरा,
बीत जाते हैं पुराने सारे पल,
नही आता तो बस ये कल! !

धूप और छांव जिंदगी यही खेल है,
और यह समय कभी न रुकने वाली रेल है।
जो दुखों के इन तूफानों को झेल न पाया,
वो यहां फेल है।।

हर दिन सोचता हूं कब मिलेगा मुझे मेरी
महनत का फल,
नहीं आता तो बस ये कल कल कल ! !

Wednesday, September 9, 2015
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COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 15 September 2015

यह एक प्यारी कविता है जिसमें जीवन की अनिश्चतता, सुख-दुःख व अनागत का इंतज़ार दिखाया गया है. बहुत सुंदर: धूप और छांव जिंदगी यही खेल है, और यह समय कभी न रुकने वाली रेल है।

1 0 Reply
Rishabh Sethia 16 September 2015

Rajnish sir, Thanks a lot for this comment it actually means a lot and it inspired me.. I am glad that you read my poems.. Tahe dil se dhanyavad :)

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